‘Khabar Karna Mujhe’, a poem by Sanwar Daiya
माँ रसोई में व्यस्त है
अपनी सम्पूर्ण झुँझलाहट और खीझ के साथ
सब्ज़ी भून रही है
और भुनभुना रही है
जिस दिन यह
गुनगुनाते हुए खाना परोसे
ख़बर करना मुझे
पिता दफ़्तर में व्यस्त हैं
अपनी सम्पूर्ण ऊब और उदासी के साथ
फ़ाइल के पन्ने फड़फड़ा रहे हैं
वे निरन्तर बडबड़ा रहे हैं
जिस दिन यह
प्रसन्नचित्त तल्लीन दिखे
ख़बर करना मुझे
भैया अपनी डिग्रियों की
फ़ोटोस्टेट करवाने में व्यस्त हैं
अपनी सम्पूर्ण हताशाओं के बीच
फिर भी जन्मी आशा के साथ
साक्षात्कार देने उत्साह के साथ जाते हैं
शाम को पिटे-पिटे-से लौट आते हैं
जिस दिन यह
उमंग के आलोक से भरा लौटे
उस दुनिया की सैर के बाद
ख़बर करना मुझे
बहन अपने ही भीतर व्यस्त है
अपनी सम्पूर्ण चुप्पी और द्वन्द्व के साथ
याद आ रही हैं बस कर उजड़ी सहेलियाँ
सुलझा नहीं पा रही है सिन्दूर की पहेलियाँ
जिस दिन यह
चहक कर घर का सपना सच कर ले
ख़बर करना मुझे
पूरा-का-पूरा घर
अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त है
इसीलिए
घर का बच्चा भी कहीं व्यस्त है
और अपने में मस्त है
यह बच्चा
कल जब बड़ा होगा
अपनी माँ या अपने पिता या अपने भैया
या अपनी बहन की तरह व्यस्त होगा
क्या तब भी मस्त होगा?
जिस दिन यह
फिर वैसा ही मस्त लगे
ख़बर करना मुझे।
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