“मेरी सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकड़ा रहता है।” बचपन से जब भी इस गाने को सुनते थे, हमारी आँखों के आगे एक खिड़की बन जाती थी। हम एक जगह खड़े होते थे, फिर भी सफ़र में होते थे। सामने की खिड़की में एक सुन्दर चेहरा होता था। उस चेहरे की मुस्कुराहट हमारी मंज़िल होती थी।
ऐसे ही न जाने कितने गानों, फ़िल्मों, कहानियों ने हमें प्यार की ज़िद सिखायी। छोटे शहरों के बच्चे, छतों पर टहलते हुए, मोहल्ले को टटोलते रहते थे। प्यार के झोंके की तलाश, एक ऐसी परीक्षा थी जिसका न प्रश्न पत्र था, न ही वाजिब जवाब। फिर भी, हमारी नज़रें भी हमेशा खिड़की के बाहर देखती रहीं।
आज जब हम घरों में क़ैद हैं, हमारी खिड़कियाँ हमसे कुछ छुपा रही हैं। हमें अपनी सड़कें दिख रही हैं, इन रास्तों पर चलते नन्हे पैर नहीं दिख रहे हैं। ये मासूम पैर, छालों से, अपनी दोस्ती बढ़ा रहे हैं। इनके सूखे होठों की पपड़ी में क़ैद आग हमारी खिड़कियों से लू बनकर टकरा रही है। पर हम ठण्डक में हैं। कितना भयावह है ये दृश्य और कितनी छोटी हैं हमारी खिड़कियाँ।
जब हम अपने प्रेमी को मैसेज करते हैं कि मैं तुम्हारे बिना मर जाऊँगा; एक बच्ची रास्ते पर दम तोड़ देती है। उसका पेट प्यार के निवालों पर हँसता है। हम अपनी खिड़की बन्द करते हैं। बिस्तर पर लेटते हैं और फ़ेसबुक पर उस लड़की का चित्र शेयर कर देते हैं। करवट लेते हैं। एक बस ट्रक से टकरा जाती है। हमारी खिड़कियाँ बन्द हैं और नेटफ़्लिक्स का पासवर्ड भी मिल गया है।
टीवी पर सत्ता के चाटुकार ऐंकर चिल्लाकर कहते हैं, “इन ग़रीबों की ग़लती ये है कि इनके पास छत नहीं है।” हमें सुनायी देता है, “इन ग़रीबों की ग़लती ये है कि इनके पास खिड़की नहीं है।”
ये सफ़र में हैं, फिर भी सालों से एक जगह खड़े हैं। खिड़की होती तो ये जान पाते कि असल लड़ाई प्यार की है, राजनीति की है, ताक़त की है, सबसे सच्चे झूठ की लड़ाई है।
इनकी हाँफती साँसों में वो सुर नहीं हैं जो लाइव जा पाएँ। इनकी हथेलियाँ किसी कविता के पूर्णविराम सी भले हों, ये वाइरल नहीं हो सकते। इनकी प्यास एक राजनैतिक पोस्ट पर छुटभैये नेताओं की लड़ाई भर है। ये सरकार की समस्या हैं और हमारे व्हाट्सएप स्टेटस।
अब जब भी खिड़की से बाहर देखता हूँ, मुझे हर चीज़ पर हँसी आती है। कितना बड़ा झूठ फैला हुआ है सामने। कोई गाना नहीं बताता कि प्यार एक ऐसा सौभाग्य है जिसे भरे पेट जिया जाता है। नहीं बोलता है कोई कि मेरी कविताओं से एक कौर तक नहीं बनाया जा सकता है। हमारी सुबहों से लेकर रातें, सरासर झूठी हैं। इस दुनिया में ख़ुशियाँ बैंकों में क़ैद हैं, जीवन पैदा होने की जगह पर गिरवी है और शान्ति सिर्फ़ सफ़ेद कबूतरों की फ़ोटो है।
मैं अब उठकर पानी पी रहा हूँ। एक बच्ची की प्यास हाईवे पर लेटी है। मेरे फ़ोन पर गाना बज रहा है, “मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना माँग।”
घरों की खिड़कियाँ बन्द हैं। देश के रास्ते खुले पड़े हैं।