खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
अपरिचित पास आओ!

आँखों में सशंक जिज्ञासा
मुक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
हिलो मिलो फिर एक डाल के
खिलो फूल-से, मत अलगाओ!

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
अपरिचित पास आओ!

सबमें अपनेपन की माया
अपनेपन में जीवन आया
चंचल पवन प्राणमय बन्धन
व्योम सभी के ऊपर छाया
एक चाँदनी का मधु लेकर
एक उषा में जगो जगाओ!

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
अपरिचित पास आओ!

झिझक छोड़ दो, जाल तोड़ दो
तज मन का जंजाल, जोड़ दो
मन से मन, जीवन से जीवन
कच्चे कल्पित पात्र फोड़ दो
साँस-साँस से, लहर-लहर से
और पास आओ लहराओ!

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
अपरिचित पास आओ!

त्रिलोचन की कविता 'गद्य वद्य कुछ लिखा करो'

Book by Trilochan:

त्रिलोचन
कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो सतंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे।