कितना वक़्त
लग जाता है यह जानने में
कि ईश्वर उतना ही था और वैसा ही
जितना-जैसा मैंने उसे होने दिया
अपने जीवन में
जब जब उसे खोजा
अंततः अपनी खोज ही को पाया
जिन्हें उसका संकेत समझा
वे मेरे ही समय-शरीर की
अदृश्य धमनियों के रक्त से लिखी
इबारतें थीं
और यही बात
प्रेम के सम्बन्ध में भी
मान लेने में
कितना वक़्त लग जाता है!