कितना तो सहज होता है
मौसम का यूँ ही मीठा हो जाना
शेफालियों का अनायास झर जाना
बारिशों का सोंधा हो जाना
भर जाना आकाश का सम्भावनाओं से
और पेट में तितलियों का उमड़ आना
कुछ भी तो नहीं होता प्रेम में क्रांतिकारी
कि बिछा दी जाएँ लाशें उसके नाम पर
लड़े जाएँ युद्ध, धार किए जाएँ हथियार
कितनी तो साधारण होती हैं उसकी इच्छाएँ
भोली… एक बच्चे के मन जितनी
एक बार मिलकर… एक बार और मिलने की इच्छा
मिलकर वापस न जाने की इच्छा
प्रेमी आँखों में डूबने की इच्छा
पहरों चुप में एक-दूसरे को सुनने की इच्छा
मौन साधने की कला योगियों ने
अवश्य सीखी होगी प्रेमियों से ही…
हठयोग जन्मा होगा इनकी ही प्रतीक्षा में
प्रेम में होना जीवन के ठीक बीच में होना है
तितली के पंखों जितना हल्का और उतना ही रंगीन
राजा को चाहिए कि बदल दे अपनी सभी जेलों को
प्रेमियों की शरणस्थली में
(दुनिया में कितनी कम जगहें है उनके लिए)
द्वारपालों के हाथों से छीन ले भाले
ज़ब्त कर ले सभी हथियार अपने सिपाहियों के, और
भेज दे उन्हें एक लम्बे अवकाश पर अपनी प्रेमिकाओं के पास
तानाशाहों को चाहिए कि वे
नेस्तनाबूत कर दें अपनी सभी प्रतिमाएँ
स्वीकार करें अपना प्रेम देश के राजमार्ग पर
ताकि करनी न पड़े उन्हें आत्महत्या
घुप अंधेरे तहख़ानों में
सेना नायकों को चाहिए
उड़ेल दें अपने टैंकों की सारी बारूद समुद्र में
और जोत दें उन्हें सरसों के खेतों में
किसान के पसीने की गंथ में लिपटी फ़सलें
सिपाहियों की वीरता के क़िस्से सुनाएँगी
प्रेम बेख़ौफ़ हो फूटेगा धरती की कोख से
ईश्वर को चाहिए
कि वह चूमे फिर से माथा
अपने बिछड़े प्रेमी का, भर आलिंगन
जैसे चूमा था उसने सृष्टि के आरम्भ में
उतना ही पवित्र, उतना ही अबोध
वसंत के खिलने से पहले…
सीमा सिंह की कविता 'तुम्हारे पाँव'