कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उसने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उसने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की
तेरा पहलू तेरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की
उसने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की!
परवीन शाकिर की ग़ज़ल 'तेरी ख़ुशबू का पता करती है'