धुंधला साहिल हैं, तन्हा सा दिल हैं,
हौंसलो का मंज़र गहरा है अबतक..
बंजर है धरती, सूखा हैं आँगन,
मुन्तज़िर हैं निग़ाहें, उस हरियाली की अबतक..
थक चुके कदम रूँह भी हैं उसकी काँप गयी,
घुंघरूओं की आवाज़ गूंज रही हैं अबतक…
तप रही हैं रोहिणी, चिलमिलती धूप हैं,
आस वो ठंडी छाया की, दस्तक दे रही दिल पर अबतक…
दुःखों का सिलसिला न थमा न रुका हैं,
उन अटूट मन्नतों के धागों का काफ़िला ज़ारी हैं अबतक…