सबेरे-सबेरे कुछ कह रही थी छोटी चिड़िया
गली सूनी थी
सूरज चढ़ा नहीं था
कोई स्तवन था
किसी देवता का
जो भरपूर देता हो अन्न और भोज्य
अपनी स्तुति से प्रसन्न होकर?
या जाते-जाते दिन-भर के लिए
लम्बी-लम्बी सावधानियों की
फेहरिस्त समझा रही थी घोंसले में छिपे चूजों को?
‘निकलना नहीं मेरे आने तक’—बार-बार दोहरा रही थी,
मेरे आने तक?
(या फिर हम समझ ही नहीं पा रहे थे)
शायद हर सुबह
उसकी राह में हर रोज़
एक ख़ूँख़ार बाज़ झपटता है—
उससे हर बार बचना है
वापिस आना है
जीना है दूसरे दिन के लिए,
हर रोज़ जीने के डर को दूर करने का
क्या कोई गीत गा रही थी छोटी चिड़िया?
सिद्धार्थ बाजपेयी की कविता 'आज सुबह ही'