(1)

ओ तस्वीरों पर राजनीति करने वालों,
लो ये तस्वीरें आज तुम्हें हम दिखा रहे।

इन तस्वीरों में हिन्द के बेटे-बेटियां,
देखो कैसे खड़े तुम्हारी राह में।
यह तस्वीरें उत्तर हैं सारे प्रश्नों का,
जो उठे हैं राजनीति की छांह में।

ओ बन्दूकों की गूंज सुना जाने वालोें,
लो ये आवाज़ें आज तुम्हें हम सुना रहे।

इन आवाज़ों से भारत गुंजायमान है,
ये साक्ष्य यहां की छात्र एकता ज़िंदा है।
ये आवाज़ें हैं सैय्यद के जांबाज़ों की,
जो बता रहीं संघर्ष सदा ताबिंदा है।

ओ सत्ता के संरक्षण में पलने वालों,
लो ज्वाल क्रांति की यहां से हम सुलगा रहे।

यह ज्वाल तुम्हारे ऐवानों को फूंकेगी,
यह ज्वाल जलेगी न्याय नहीं मिल जाने तक।
यह ज्वाल तुम्हारी फूंकों से न बुझी कभी,
यह ज्वाल जलेगी सरकारें हिल जाने तक।

(#WeStandWithAMU आंदोलन के दौरान)

(2)

ओ ‘संस्कृति’ के रक्षकों, छिपकर कहां बैठे हुए हो,
क्यों तुम्हारा रक्त ठंडा, क्यों अधर पर मौन है?

हैं कहां सब काफ़िले वे जो कि हर दिन,
‘संस्कृति’ की दे दुहाई चीख़ते हैं?
हैं कहां वे जोकि गर्वित हिंद पर हैं,
क्यों विफ़लताओं से आंखे मीचते हैं?

ओ न्याय के ध्वजवाहकों, आंखों पे पट्टी क्यों धरे हो,
क्यों नहीं कुछ देखते कि आज दोषी कौन है?

भीड़ बनकर जो बचाते ‘संस्कृति’ को,
क्यों उन्हें अस्मत ज़री दिखती नहीं?
उत्पात कर गौरव दिलाते भारती को,
‘संस्कृति’ क्या देश की बेटी नहीं?

ओ कवि, ओ लेखकों, यशगान करते हिंद का जो,
है कहां अब शौर्य सारा, क्यों क़लम पर मौन है?

मैं प्रणय के गीत गा सकता हूं लेकिन,
मुंह चुरा लूं कैसे इन हालात से?
मैं भी लिख सकता हूं मौसम की बहारें,
कैसे समझौता करूं जज़्बात से?

देश के परिवेश में नफ़रत की ज्वाला भर रहे जो,
अपने घर को आग देकर बोलो‌ बचता कौन है?

ओ ‘संस्कृति’ के रक्षकों, छिपकर कहां बैठे हुए हो,
क्यों तुम्हारा रक्त ठंडा, क्यों अधर पर मौन है?

(उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 17 साल की बालिका संस्कृति राय की हत्या पर #JusticeForSanskritiRai अभियान के दौरान)

(3)

सुनो बुद्ध, कुछ क्षण तो ठहरो,
आओ हम और तुम बतियायें
जिस धरती पर जन्मे थे तुम,
उसके कुछ हालात दिखाएं।

देखो वह पीपल है जिसके नीचे तुमको ज्ञान मिला कि
मानवता ही सर्वोपरि है, मानव को मत दुःख पहुंचाओ
बोधिवृक्ष वह सूख चुका है जहां से तुमने जाना था कि
मानवता पर दया करो, मानव हो हिंसा मत भड़काओ

विश्व उसे अब भूल चुका वह धूल धूसरित पड़ा हुआ है
वही त्रिपिटक जिसमें तुमने मानव को सत्कर्म सिखाए
उसी राजगद्दी को‌ हथियाने की ख़ातिर कोलाहल है
जिसे छोड़ जब तुम निकले तो संन्यासी गौतम कहलाए

देखो वह बर्मा की धरती
जहां तुम्हारे अनुयायी हैं
मानवता को शर्मसार कर
कैसा ख़ूनी खेल रचाएं

सुनो बुद्ध, कुछ क्षण तो ठहरो,
आओ हम और तुम बतियायें
जिस धरती पर जन्मे थे तुम,
उसके कुछ हालात दिखाएं।

देखो यह भारत भूमि जिसने तुमको पाला-पोसा था
इंसानों के ख़ून से कैसी अटी हुई है, रंगी हुई है
देखो यह जो नाम तुम्हारा लेते हैं हर पूर्णिमा को
इनके दिल में इंसानों से कैसी नफ़रत भरी हुई है

एक तुम्हारा दौर था जब सम्राटों के दिल तुमने बदले
एक हमारा दौर कि जिसमें दिल काले हैं, मन काले हैं
भिक्षु वेष धारण कर प्रायः हिंसा होते देख रहे हैं
कभी करें बंदूक की खेती, कभी कहें गौतम वाले हैं

याद मुझे वह दिन भी है जब
देख हंस तुम तड़प गये थे
इनसे कहना बनें तथागत
मानवता की लाज बचाएं

सुनो बुद्ध, कुछ क्षण तो ठहरो,
आओ हम और तुम बतियायें
जिस धरती पर जन्मे थे तुम,
उसके कुछ हालात दिखाएं।

(बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर)

(4)

ओ तनिक समय में वर्तमान से
गत हो जाते वर्ष सुनो
यह बतलाओ तुम किस-किसको
क्या देकर के जाते हो

क्या देकर जाते हो तुम उन अभागिनी माताओं को
जो बेटों के इन्तज़ार में द्वार खोलकर बैठी हैं
क्या देकर जाते हो तुम उन बलिदानी गाथाओं को
जो वादी की शीतलहर में रोज़ जन्म ले लेती हैं

जाने कितने फ़ूल ले गए नागफ़नी के आंगन से
दूर तलक जो वन-मरूथल में ख़ुशबू सी फ़ैलाते थे
कितनी काग़ज़ की नौकाएं छीन ले गए सावन से
भारी-भरकम सपन लाद दो हाथ जिन्हें तैराते थे

जाते-जाते हां तुमने नफ़रत के हाथ मरोड़े हैं
लेकिन यह हस्तांतरण नफ़रत का क्या न्यायोचित है?
मनभावन आशाओं के कुछ दीप जलाकर छोड़े हैं
लेकिन क्या यह परिवर्तन भी पूर्णतः संयोजित है?

ओ क्षणिक समय को आने वाले
उत्साहित नव-हर्ष सुनो
यह बतलाओ कितनी पीड़ाओं
का मन बहलाते हो…

( #विदागीतवर्ष2018 )