‘Kunthaaon Ka Skhalan’, a poem by Ruchi

मैंने प्रेम को स्पर्श भर जाना और स्पर्श से महसूस करना चाहा प्रेम,
उसने मुझे सिखाया दूर बैठ आँखें मूँद धरती,
आकाश, मैं, तुम से प्रेम करना,
अब मुझे आता है स्पर्शविहीन प्यार जताना।

उसको बिस्तर की चादर-सा जाना
सोचता था जब चाहूँ बदल सकता हूँ
पर उसने महसूस कराया वो गर्म लिहाफ़ है,
जिसको इर्द-गिर्द लपेट महसूस कर सकता हूँ
मैं गरमाहट का सुकून आजीवन।

उसकी छातियों को मसलने की उत्कण्ठा थी,
पर उसने सिखाया डूबना आहिस्ता छातियों के मध्य,
तब मैंने जाना डूबना मसलने से कहीं ज़्यादा अद्भुत है,
और मैंने सीखा उत्कण्ठाओं पर क़ाबू पाना।

अधरों की आसक्ति को धता बता
उसने चुम्बन को बनाया अद्भुत,
अब मैं अपनी बन्द पलकें छूकर
डूब सकता हूँ प्रेम में उसके, आकण्ठ।

उसने मेरी तमाम कुण्ठाओं को किया स्खलित
हर बार अपने अनूठे प्रेम से,
वरना मैं मूरख ढूँढता रहता सम्भावनाएँ प्रेम की,
उसकी देह में लगाकर गोते, मन से परे।

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