यहीं तक का सफर था साथ में क्या,
मिलोगी मुझको जश्न-ए-रात में क्या

बड़ी तिरछी नज़र से देखा कल,
नहीं आओगी अब बिसात में क्या

तुम्हारे बाद सब से मुँह था फेरा,
मरूँगा भी इसी हालात में क्या

रोशनी के सब चिराग मद्धम हैं,
आने वाली हो तुम नक़ाब में क्या

हो तुम मेरी, मैं तुम्हारा था,
गड़बड़ी अब है फिर हिसाब में क्या

जो कश्ती मिलके संग में ढोई थी,
कहो डूबेगी अब सैलाब में क्या

वो जिन हाथों को थामा करता था,
कभी आएंगे न अब हाथ में क्या

मोहब्बत हमसे क्या दिखावा थी,
चली जाओगी उसके साथ में क्या!