ये जो मधुमक्खी के छत्ते रस से पूरे हैं भरे
ये जो फल पकने लगे हैं और कुछ जो हैं हरे,
बाग़ों में खिलकर उठे हैं फूल ये जो रेशमी
और बहारों ने हैं लादीं पत्तों से डालें पेड़ की,
ये जो मुझको दिख रही रंगीनियाँ संसार की
ये जो दुनिया दिख रही धातु के उझले तार की,
ये जो चेहरे मुस्कुराते हैं नजर के सामने
मैंने भी देखा इन्हें है और देखा आपने,
सूख के छत्तों के क्या कंकाल ही बच पाएँगे
क्या हरे और अधपके ये फल सभी सड़ जाएँगे,
बाग़ के ये फूल सारे क्या यहीं मुरझाएँगे
क्या ये जिंदादिल से पत्ते भी यहीं झड़ जाएँगे,
क्या ये सब रँगीनयाँ, कल ख़त्म ही हो जाएँगी
क्या इन तारों पर भी काली जंग ही लग जाएगी,
मुस्कुराते लोग क्या रोते हुए मिल जाएँगे
दिख रहे जो आज वो फिर कल नजर ना आएँगे,
क्या सभी मर जाएँगे? क्या सभी मर जाएँगे?