क्यों इन तारों को उलझाते?
अनजाने ही प्राणों में क्यों
आ-आकर फिर जाते?
पल में रागों को झंकृत कर,
फिर विराग का अस्फुट स्वर भर,
मेरी लघु जीवन वीणा पर
क्या यह अस्फुट गाते?
लय में मेरा चिर करुणा-धन
कम्पन में सपनों का स्पन्दन
गीतों में भर चिर सुख, चिर दुःख
कण-कण में बिखराते!
मेरे शैशव के मधु में घुल
मेरे यौवन के मद में ढुल
मेरे आँसू स्मित में हिल-मिल
मेरे क्यों न कहाते?
महादेवी वर्मा का लेख 'स्त्री के अर्थ-स्वातन्त्रय का प्रश्न'