धूप तले
ख्व़ाब ढूंढें
ऐ दिल-ए-नादाँ
क्यूँ तू जिद करे…

तूने क्या खोया
तूने क्या पाया
धड़कनों की सांसों में
खुद को ही उलझाया…

फिर भी
सूनी गलियों में
ढूँढता रहा
मंजिलों की थकान
जेबें तेरी खाली
ख़्वाहिशें जैसे ऊँची मकान
काफ़िर-काफ़िर ढूंढें फिरे
ऐ दिल-ए-नादाँ
क्यूँ तू जिद करे…