‘Ladki Chahti Hai’, a poem by Pratap Somvanshi
घर में काम पर लगे बढ़ई को देखकर
बड़ा होकर बढ़ई बनना चाहती है लड़की
ताकि वह अपने गुड्डे-गुड़िया
के लिए घर और फ़र्नीचर बना सके
एक दिन के भीतर यह लड़की की बदली हुई इच्छा है
कल बीमार माँ को दर्द से कराहते देखकर लड़की ने
माँ को डाक्टर बनने का दिलासा दिया था।
ठीक एक रोज़ और पहले की बात है
खेलने के दौरान भाई ने बेईमानी की थी
बहुत ज़ोर से चिल्ला पड़ी थी लड़की
पुलिस अफ़सर बनकर जेल भेजने की धमकी दी थी
गुज़री गर्मियों की बात है
लड़की दादी के पास गाँव जा रही थी
रेलगाड़ी जब रुक-रुककर चल रही थी
बेचैनी और अकुलाहट के बीच लड़की
ने रेल का ड्राइवर बनने की बात कही थी
आठ बरस की लड़की
क्या बनना चाहती है, क्यों बनना चाहती है
इस पर मत जाइए,
ग़ौर कीजिए कि
लड़की इतनी छोटी-सी उमर में
कुछ भी बनने की भूमिका में
अपनी इच्छा जीना चाहती है
घर की ज़रूरत बनना चाहती है!
यह भी पढ़ें: प्रताप सोमवंशी की कविता ‘शेष कुशल है’