‘Ladkiyaan’, a poem by Deepak Jaiswal
वे बारूद और बन्दूकों को नहीं चाहतीं
तितलियाँ, पंख, बारिश, फूल, गिटार
को चाहती हैं…
उनका दिल मोम, शहद और धातुओं
का बना होता है
वे प्रेम करती हैं
उनका दिल ख़ूबसूरत और बड़ा होता है
वे रिश्तें बुनती हैं
चीज़ों को क़रीने से रखती हैं
वे संवेदनाओं को रचती हैं
युद्ध में कोई पुरुष नहीं मरता
सिर्फ़ स्त्रियाँ मरती हैं
कई दफ़ा…
लाशों को नोंचते कौए
उनकी आत्मा को खाते हैं
उनकी आँखें जब उदास होती हैं
धरती अपनी उर्वरता खोने लगती है
तितलियाँ बूढ़ी होने लगती हैं
रंग मनहूसियत ओढ़ लेते हैं!
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