बोलो बेटे अर्जुन!
सामने क्या देखते हो तुम?
संसद? सेक्रेटेरिएट? मंत्रालय? या मंच??
अर्जुन बोला तुरन्त
गुरुदेव! मुझे सिवा कुर्सी के कुछ भी नज़र नहीं आता!
पुलकित गुरु बोले द्रोण
हे धनसंचय! तुम मंत्रीपद वरोगे
काम कुछ भी नहीं करोगे
फिर भी
धन से घर भरोगे
केवल कुर्सी के लिए जियोगे।
और कुर्सी के लिए ही मरोगे।