‘Laut Aaya Prem’, a poem by Pallavi Mukherjee
एक लम्बे समय के बाद
वे दोनों
पास-पास थे
डूब रहे थे
एक दूसरे की आँखों में
जैसे अथाह समुद्र में
डूब रहे हों
चाय की
दो प्यालियों के बीच
प्रेम पुनः अंकुरित हो रहा था
जैसे पहली बार
देख रहे हों
एक दूसरे को
दोनों की आँखों में
रंगीन मछलियाँ
तैर रही थीं
और
मछलियों के रंग ने
पानी के रंग को
रंगीन कर दिया था
उन दोनों के बीच
सिर्फ़ मौन था
बस बोल रही थी गौरेया
खिड़की के उस पार
बारिश
जा चुकी थी
पर
बूँदों का टपकना
बदस्तूर जारी था…
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