‘Lautate Qadam’, a poem by Gaurav Bharti
दहशत भरे इस माहौल में
घर की तरफ़ लौटते ये क़दम
एक दिन फिर लौटेंगे
राजधानी की तरफ़
वे रंगों के नापाक विभाजन को झुठला देंगे
फटे हुए लोकतंत्र को फिर से सीलेंगे
वे फिर से खड़े होंगे
लाखों की तादाद में
सत्ता की निरंकुशता के ख़िलाफ़
वे घर से मोहल्ला
मोहल्ले से गाँव
गाँव से ज़िला
ज़िले से राज्य
राज्य से राजधानी की तरफ़ लौटेंगे
यही लौटते क़दम
एक दिन
लौटाएँगे इस मुल्क का भविष्य…
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