वरिष्ठ ताइवानी कवि ली मिन-युंग की कविताओं के हिन्दी अनुवाद का संकलन ‘हक़ीक़त के बीच दरार’ पिछले दिनों प्रकाशित हुआ। अनुवाद देवेश पथ सारिया ने किए हैं। किताब कलमकार मंच से प्रकाशित हुई है। प्रस्तुत हैं इसी किताब से कुछ कविताएँ—

सरहदें

(अंग्रेज़ी अनुवाद: के. सी. तू)

कोई सरहद नहीं होती
नीले सागर से घिरे
एक द्वीप की

कोई सरहद नहीं होती
चमकते आसमान के नीचे स्थित
एक द्वीप की

और वे होते कौन हैं
सरहदें तय करने वाले
लोहे के परकोटे बनाकर

कँटीली बाड़
कस देती है लगाम
उत्कण्ठा पर
लम्बी यात्राओं की

घनी जालियाँ
लगा देती हैं विराम
उम्मीदों पर
मुक्त उड़ान की।

स्वप्न

(अंग्रेज़ी अनुवाद: विलियम मार)

रात गहराने के बाद
हक़ीक़त के बीच थी एक दरार
जिससे होकर मैं बच निकला

हालाँकि
उम्र-क़ैद पाए क़ैदी की तरह
जेल में रखा था मुझे
तुमने

छूट भागने के बाद
आज़ाद था मैं

तुम नहीं जकड़ सके
मेरे हाथ में खिंची
प्यार की लकीर को
तुम नहीं पकड़ सके
मेरे क़दमों से छूटे
नफ़रत के निशानों को।

यदि तुम पूछो

(अंग्रेज़ी अनुवाद: जोयस हुआंग)

यदि तुम पूछो
कौन है ताइवान द्वीप का पिता
मैं तुम्हें कहूँगा
आकाश है ताइवान द्वीप का पिता

यदि तुम पूछो
कौन है ताइवान द्वीप की माँ
मैं तुम्हें कहूँगा
समुन्दर जननी है ताइवान द्वीप की

यदि तुम पूछो
क्या था ताइवान द्वीप का बीता हुआ कल
मैं तुम्हें बताऊँगा
ताइवान के इतिहास की परतों में दबे
ख़ून और आँसुओं के बारे में

यदि तुम पूछो
कैसा दीखता है वर्तमान ताइवान द्वीप का
मैं तुम्हें बताऊँगा
ताइवान की आत्मा को
गला रहा है
शक्ति-सम्पन्नों का भ्रष्टाचार

यदि तुम पूछो
कैसा होगा ताइवान द्वीप का भविष्य
मैं तुम्हीं से कहूँगा
अपने क़दमों पर खड़े हो जाने को
रास्ता भविष्य का
तुम्हारे लिए खुला है।

पुकार की सीमा में

(अंग्रेज़ी अनुवाद: लिन माइल्स)

दूर की आवाज़ें
सुन सकता हूँ मैं
आती हुईं
दुर्दान्त अपराधियों के लिए बने फाँसी-घरों से
या
अस्पताल के प्रसूति कक्ष से

रात के एकान्त में
मैं कविता पढ़ता हूँ
एक पराई ज़मीन से

कवि, भाषा की स्ट्रैचर पर
बचा लाता है
एक राजनीतिक बन्दी को
फाँसी-घर से
और बैप्टाइज़ करता है उसे

मुझे पूछो तो
बेहतर दृश्य यह होगा
कि सूरज चढ़ने से पहले
एक नवजात को हौले-से
झूला झुलाती हो कोई नर्स

गर्भाशय से अभी जन्मा
रोता हुआ बच्चा
सच में
स्त्रीत्व का आमोद है।

मेरा देश

(अंग्रेज़ी अनुवाद: लिन माइल्स)

मेरा देश
मेरे दिल में ज़ब्त
एक रहस्य है

वहाँ नहीं है कँटीली बाड़ तारों की
किसी फ़ौज की मौजूदगी नहीं

वहाँ का झण्डा, पत्तियों से बना हुआ
लहरें वहाँ, हवा में हिलोरें मारतीं

पूरे द्वीप की धरती पर स्थित पेड़
मानो झण्डे टाँगने के पोस्ट हैं

कलरव करता
पंछियों का एक झुण्ड
जंगल से उत्तर देता है
प्रकृति की संदेशवाहक
हवा की ताल का।

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‘हक़ीक़त के बीच दरार’ यहाँ से ख़रीदें:

देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-लेखक एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्रकाशित पुस्तकें— कविता संग्रह : नूह की नाव । कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)। अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार; यातना शिविर में साथिनें।