Poems by Leopold Staff, a Polish poet
अनुवाद: आदर्श भूषण
क्या तुम?
तुम मुझे बुलबुल, गुलाबों और चाँद
की प्रशंसा करने से मना करते हो,
ये शायद लगते हों तुच्छ,
मामूली या फिर ऐसे
जिनपर कोई कविता न गढ़ी जा सके,
मैं सोचता हूँ:
गर बहुत पहले
दो लोग पिघलती चाँदनी,
गुलाबों की ख़ुशबू और
बुलबुल के सुरीले मधुर संगीत से
भरी शाम में
एक दूसरे का हाथ थामे टहले नहीं होते,
तो क्या तुम यहाँ मौजूद भी होते?
माँ
गोधूलि के समय
खिड़की के पास,
माँ का पाँव
सोते हुए शिशु का
पालना झुलाता है।
किंतु अब पालना नहीं रहा,
किंतु अब शिशु नहीं रहा,
शिशु अब अंधेरों के बीच है कहीं।
गोधूलि के समय
माँ अकेली बैठी है
स्मृतियों को झुलाते हुए।
शाम
मैं नाव में लेटा हुआ हूँ,
शाम की स्थिरता में।
ऊपर तारे हैं,
नीचे भी,
और मेरे अन्दर भी।
अन्याय
मेरे छोटे से
बुद्धिमान कुत्ते के,
जीवन की अल्पावधि
पूरी हो चुकी है,
बिना यह जाने हुए कि
यह दुनिया एक पहेली है।
नया
बारीकी से आगे देखने में कुछ बुरा नहीं,
किंतु भविष्यवेत्ता मत बनो,
यह काम ठगों के लिए छोड़ दो।
इसका हूबहू चित्रण न हो पाए, यह इतना कठिन तो है।
मैं बहुत आराम से लिखता हूँ कविताएँ,
बैलों की तरह श्रम साधक हूँ।
धैर्यवान हूँ,
काँपती बारिश की बूँदों की तरह।
समय के पास हमेशा है समय,
दुनिया, दुनिया के जितनी ही पुरानी है।
नयापन ढूँढते हुए,
तुम कुछ नया नहीं रच पाओगे।
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