मुझे लगता था कि
चिड़ियों के बारे में पढ़कर क्या होगा
उन्हें बनाए रखने के लिए
मारना बन्द कर देना चाहिए
कारख़ानों में चिमनियाँ
पटाखों में बारूद
बन्दूक़ में नली
या कम से कम
इंसान के हाथ में उंगलियाँ नहीं होनी चाहिए
आसमान में आग नहीं, चिड़िया होनी चाहिए।

वनस्पतिशास्त्र की किताब में
अकेशिया पढ़ते हुए लगा कि
इसे पढ़ना नहीं, बचा लेना चाहिए
आरियों में दाँत थे
दिमाग़ नहीं
हमारे हाथों में अब भी उंगलियाँ थीं
जबकि आसमान में चिड़िया होने के लिए
मिट्टी में बदस्तूर पेड़ का होना ज़रूरी था।

फिर देखा मैंने
स्त्री बची रहे, प्रेम बचा रहे
इसके लिए
क़लम का
भाषा का ख़त्म होना ज़रूरी है
हर हत्या हमारी उँगलियों पर आ ठहरी
जिन्होंने प्रेम और स्त्री पर बहुत लिखा
दरअसल उन्होंने ही नहीं किया प्रेम किसी स्त्री से।

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अनुराधा सिंह
जन्म: 16 अगस्त, उत्तर प्रदेश। शिक्षा: दयालबाग शिक्षण संस्थान आगरा से मनोविज्ञान और अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर। प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं और ब्लॉग्स में कविताएँ, अनुवाद व आलेख प्रकाशित। पत्रिकाओं के विशेषांकों, कवि केंद्रित अंकों, विशेष स्तम्भों के लिए कविताएँ चयनित व प्रकाशित। सम्प्रति मुंबई में प्रबंधन कक्षाओं में बिजनेस कम्युनिकेशन का अध्यापन।