मेरी होठों की कुछ कमसिन बूंदे
जो तुम्हारे लबों से वाबस्ता हो जाती हैं
और इत्मीनान से ठहर के
इस सिलसिले में शरीक होती हैं
कि शायद ये भी रोज़ होने वाली आशनाई की बस
एक मिसाल भर हो
जो लब से लब तक का ही ताअल्लुक़ रखती है
जिसे बाकी के जिस्म के तआरुफ़ की ज़रूरत
न जान पड़ती हो
जिसे मालूम ही न हो
रूह से रूह की निस्बत क्या होती है
पर अगर
मेरे ख़्याल की इक आहट आने पे तुम्हारी धड़कनें
अगर डेढ़-दूनी हो जायें
और लब पे कोई थिरकन हो
जैसे किसी सूफी के रक़्स में होती है
तो समझ लेना एक नासमझे से लड़के ने,
तुम्हारे लबों पे मोहब्बत की
चाशनी लेप दी है
एक मरहम ही तरह
बेरुखी की खुश्की से बचने के लिए,
जैसे कि तुम वो ‘लिप बाम’ लगाया करती हो।