आप लोहे की कार का आनन्द लेते हो
मेरे पास लोहे की बन्दूक़ है

मैंने लोहा खाया है
आप लोहे की बात करते हो
लोहा जब पिघलता है
तो भाप नहीं निकलती
जब कुठाली उठाने वालों के दिल से
भाप निकलती है
तो लोहा पिघल जाता है
पिघले हुए लोहे को
किसी भी आकार में
ढाला जा सकता है

कुठाली में देश की तक़दीर ढली होती है
यह मेरी बन्दूक़
आपके बैंकों के सेफ़;
और पहाड़ों को उल्टाने वाली मशीनें,
सब लोहे के हैं
शहर से वीराने तक हर फ़र्क़
बहन से वेश्या तक हर एहसास
मालिक से मुलाज़िम तक हर रिश्ता
बिल से क़ानून तक हर सफ़र
शोषणतंत्र से इंक़लाब तक हर इतिहास
जंगल, कोठरियों व झोंपड़ियों से लेकर इंटेरोगेशन तक
हर मुक़ाम सब लोहे के हैं।

लोहे ने बड़ी देर इंतज़ार किया है
कि लोहे पर निर्भर लोग
लोहे की पत्तियाँ खाकर
ख़ुदकुशी करना छोड़ दें
मशीनों में फँसकर फूस की तरह उड़नेवाले
लावारिसों की बीवियाँ
लोहे की कुर्सियों पर बैठे वारिसों के पास
कपड़े तक भी ख़ुद उतारने के लिए मजबूर न हों

लेकिन आख़िर लोहे को
पिस्तौलों, बन्दूक़ों और बमों की
शक्ल लेनी पड़ी है
आप लोहे की चमक में चुँधियाकर
अपनी बेटी को बीवी समझ सकते हैं,
(लेकिन) मैं लोहे की आँख से
दोस्तों के मुखौटे पहने दुश्मन भी पहचान सकता हूँ
क्योंकि मैंने लोहा खाया है
आप लोहे की बात करते हो।

पाश की कविता 'अब विदा लेता हूँ'

Book by Paash:

अवतार सिंह संधू 'पाश'
अवतार सिंह संधू (9 सितम्बर 1950 - 23 मार्च 1988), जिन्हें सब पाश के नाम से जानते हैं पंजाबी कवि और क्रांतिकारी थे।