तुम ये खिड़की देख रहे हो न
इसी में से आता-जाता है चाँद
बादलों से चोरी-छुपे
आसमान से झूठ बोल के
मेरे कमरे में
रौशनी बिखेर देता है
और पता है हमारी गुफ़्तगू अमूमन
इमोजीस में होती है
मेरा हाल तो हमेशा पूछता है
पर हम कभी मुस्तक़बिल की बातें नहीं करते है
मैंने आज तक उसे चंद्रमा नहीं कहा
हमेशा चाँद ही बुलाया
रोज़ अपनी इक तस्वीर
मेरे सोने से पहले भेज देता है
पर चाँद कभी खुद को फोटोशॉप नहीं करता
मुझे पूरा यकीं है
हमारी ये लॉन्ग डिस्टेन्स रिलेशनशिप हमेशा-हमेशा बरकरार रहेगी
क्योंकि वो मुझसे भी ज्यादा पोसेसिव है
पर जब अमावस होती है ,
मैं तब भी,
आधी खिड़की खोल देता हूँ।
चित्र श्रेय: स्वयं लेखक द्वारा