कविता ‘लुक़मान अली’ से एक अंश
झाड़ियों के पीछे एक बौना आदमी पेशाब करता हुआ गुनगुनाता है और सपने में
देखे हुए तेन्दुए के लिए आह भरता हुआ वापस चला जाता है। यह लुक़मान
अली है—जिसे जानने के लिए चवन्नी मशीन में नहीं डालनी पड़ती।
लुक़मान अली के लिए चीज़ें उतनी बड़ी नहीं हैं, जितना उन तक पहुँचना।
वह पीले, लाल, नीले और काले पाजामे एक साथ पहनकर जब खड़ा होता
है, तब उसकी चमत्कार-शक्ति उससे आगे निकल जाती है।
वह तीन लिखता है और लोग उसे गुट समझने लगते हैं और
प्रशंसा में नंगे पाँव अमूल्य चीज़ें भेंट देने आते हैं—मसलन,
गुप्तांगों के बाल, बच्चों के बिब और चाय के ख़ाली डिब्बे।
वह इन्हें सम्भालकर रखता है और फिर इन्हें कबाड़ी को बेच
अफ़ीम बकरी को खिला देता है। यह उसका शौक़ है और इसके
लिए वह गंगाप्रसाद विमल से कभी नहीं पूछता।
‘लुक़मान अली कहाँ और कैसे हैं?’
अगर आपने अँगूठिए की कथा पढ़ी हो
तो आप इसे अपनी जेब से निकाल सकते हैं। इसका नाम
लेकर बड़े-बड़े हमले कर सकते हैं, पीठ पर बजरंग बली के चित्र दिखा सकते हैं,
आप आँखें बन्द करके अमरीका या रूस या चीन या किसी
भी देश से भीख माँग सकते हैं और भारतवासी कहला सकते
हैं—यह भी मुझे लुक़मान अली बताता है।