बुलाने के लिए कई नाम हैं
जिसे पुकारो बोलता भी है
पर एक नाम ऐसा है जिसे पुकारो तो
सब चौकन्ने हो जाते हैं
सभी सोचते हैं ये नाम मेरे लिए तो नहीं
माँ… माँ… माँ…
ओ लड़के
ओ बेटा
वह मेरी बेटी
कहाँ मर गई हो
माँ माँ माँ कहता जब कोई बच्चा
गली में से निकलता है
सड़क पार करता है
या पहाड़ चढ़ता है
पहाड़ उतरकर आँगन में आ खड़ा होता है
तब माँ एकदम सुबह के गुलाब की तरह
खिल उठती है
दोनों दरवाज़े थामकर देखती है
गलियों में जाते, गुल्ली-डण्डा घुमाते, गिट्टे उछालते
माँ माँ कहकर लिपट जाते हैं
माँ को सब एक तरह से ही बुलाते हैं
मधुरता में नहलाकर, चाव से भरकर
ज़रा-सा डरकर आतुरता से
माँ… माँ… माँ
बछड़ा रम्भाता है बां बां बां
गाय कई बार रस्सी तोड़ने का यत्न करती है
मालिक का कोई डर नहीं रहता
कोई भी उलझन हो, कोई भी ख़ुशी हो, कोई भी उम्र हो
कहता है माँ, माँ कहाँ हो तुम माँ
हाय बाप कोई नहीं कहता।