घर में माँ की कोई तस्वीर नहीं
जब भी तस्वीर खिंचवाने का मौक़ा आता है
माँ घर में खोयी हुई किसी चीज़ को ढूँढ रही होती है
या लकड़ी, घास और पानी लेने गई होती है

जंगल में उसे एक बार बाघ भी मिला
पर वह डरी नहीं
उसने बाघ को भगाया, घास काटी घर आकर
आग जलायी और सबके लिए खाना पकाया

मैं कभी घास या लकड़ी लाने जंगल नहीं गया
कभी आग नहीं जलायी
मैं अक्सर एक ज़माने से चली आ रही
पुरानी नक़्क़ाशीदार कुर्सी पर बैठा रहा
जिस पर बैठकर तस्वीरें खिंचवायी जाती हैं

माँ के चहरे पर मुझे दिखायी देती है
एक जंगल की तस्वीर— लकड़ी, घास और
पानी की तस्वीर, खोयी हुई एक चीज़ की तस्वीर…

Book by Mangalesh Dabral: