1
उसने बुना था पृथ्वी को
तरह-तरह की ऋतुओं से
मेरे लिए
मखमली हरी घास बिछायी थी
इन्द्रधनुष खिलाए थे
उसे मालूम था
मुझे सींचने वाले बहुत लोग नहीं हैं
इसलिए उसने मुझे एक ऋतु दी
पूरी बसन्त ऋतु
और एकदम पूरा चाँद।
2
दुर्घटनाओं के ठीक बीचोबीच
अँधेरी सुरंगों में
मैं उसे याद करता हूँ
और आम की छाँव याद आती है
बसन्त दस्तक देता है
और नब्ज़ छूकर बुख़ार देखती
माँ याद आती हैं…
मैं तुमसे कुछ और नहीं चाहता
माँ के लिए
बालिश्त भर धरती
और अपने लिए
मुट्ठी भर आसमान चाहता हूँ।
3
टहनियों का बोझ थामे हुए
बालिश्त भर ज़मीन पर
आसमान को मुट्टियों में भरे
एक पेड़ की तरह
खड़ी हैं माँ
मुश्किल से पाँच फीट की होंगी
पर सौ फीट तक छाया
हज़ार तक हरियाली
और कोसों तक बसन्त देती हैं माँ।
4
बहुत बचपन में उसने
मेरे लिए पकड़ी थीं तितलियाँ
फोड़ी थी मूँगफलियाँ
और निकाले थे चाँद सितारे…
चोंच थी उसके पास
चोंच थी गौरैये की
बच्चों के मुँह में दाना रखने वाली
चोंच भी उसके पास
बहुत बचपन में…
कहाँ हैं माँ
जिसकी छाती से
फूट पड़ी थीं नदियाँ
उस अनाथ बालक के वास्ते
और तितलियों की तरह
उमग आया था प्यार…।
5
माँ सूर्योदय नहीं होने देगी
क्योंकि अभी मेरी नींद नहीं टूटी है
अमावस रात नहीं घिरने देगी
क्योंकि मैं अभी घर नहीं लौटा हूँ।
नदी की तरह
लोरी सुनाती हुई माँ
धरती, आकाश और
पूरी दुनिया को सुला देती है…।
6
मैं उसके लिए एक फूल हूँ
मेरी ख़ुशी से बढ़कर
उसके लिए कोई उत्सव नहीं
और मेरे लिए वह
धरती और स्वर्ग से ज़्यादा वैभव है
मैं नहीं चाहता कि वे
मेरी माँ को रानी बनाएँ
मेरी माँ को रानी बनाएँ
ताजपोशी करें
और सिंहासन पर बैठाएँ…
मैं बस
माँ के लिए
बालिश्त भर धरती
और अपने लिए
मुट्ठी भर आसमान
चाहता हूँ…।