एक बार हमारी मछलियों का पानी मैला हो गया था
उस रात घर में साफ़ पानी नहीं था
और सुबह तक सारी मछलियाँ मर गई थीं
हम यह बात भूल चुके थे
एक दिन राखी अपनी कॉपी और पेंसिल देकर
मुझसे बोली—
पापा, इस पर मछली बना दो
मैंने उसे छेड़ने के लिए काग़ज़ पर लिख दिया—मछली
कुछ देर राखी उसे ग़ौर से देखती रही
फिर परेशान होकर बोली—यह कैसी मछली!
पापा, इसकी पूँछ कहाँ और सिर कहाँ
मैंने उसे समझाया—
यह मछली का म
यह छ, यह उसकी ली
इस तरह लिखा जाता है—म…छ…ली
उसने गम्भीर होकर कहा—अच्छा! तो जहाँ लिखा है मछली
वहाँ पानी भी लिख दो!
तभी उसकी माँ ने पुकारा तो वह दौड़कर जाने लगी
लेकिन अचानक मुड़ी और दूर से चिल्लाकर बोली—
साफ़ पानी लिखना, पापा!
नरेश सक्सेना की कविता 'पानी क्या कर रहा है'