मचलें पाँव
कह रहे मन से
आ चलें गाँव।
कहता मन
गाँव रहे न गाँव
केवल भ्रम।
ली करवट
शहरीकरण ने
गाँव लापता।
मेले न ठेले
न ख़ुशियों के रेले
गर्म हवाएँ।
वृक्ष न छाँव
नंगी पगडंडियाँ
जलाएँ पाँव।
शहरी ताप
चहुँ ओर विकास
मरा है हास।
बदले ग्राम
वाहनों के शोर से
चैन हराम।
शहरी हुए
गाँव की यादें अब
आँखों से चुएँ।
गाँव बेहाल
शहरी हवाओं ने
लूटा ईमान।
सिर पे भार
लाँघे बीहड़ रास्ते
गाँव की नार।