मगध के लोग
मृतकों की हड्डियाँ चुन रहे हैं

कौन-सी अशोक की हैं?
और चन्द्रगुप्त की?
नहीं, नहीं
ये बिम्बिसार की नहीं हो सकतीं
अजातशत्रु की हैं,

कहते हैं मगध के लोग
और आँसू
बहाते हैं

स्वाभाविक है

जिसने किसी को जीवित देखा हो
वही उसे
मृत देखता है
जिसने जीवित नहीं देखा
मृत क्या देखेगा?

कल की बात है –
मगधवासियों ने
अशोक को देखा था
कलिंग को जाते
कलिंग से आते
चन्द्रगुप्त को तक्षशिला की ओर घोड़ा दौड़ाते
आँसू बहाते
बिम्बिसार को
अजातशत्रु को
भुजा थपथपाते

मगध के लोगों ने
देखा था
और वे
भूल नहीं पाये हैं
कि उन्होंने उन्हें
देखा था

जो अब
ढ़ूँढ़ने पर भी
दिखाई नहीं पड़ते!

श्रीकान्त वर्मा
श्रीकांत वर्मा (18 सितम्बर 1931- 25 मई 1986) का जन्म बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ। वे गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। ये राजनीति से भी जुड़े थे तथा राज्यसभा के सदस्य रहे। 1957 में प्रकाशित 'भटका मेघ', 1967 में प्रकाशित 'मायादर्पण' और 'दिनारम्भ', 1973 में प्रकाशित 'जलसाघर' और 1984 में प्रकाशित 'मगध' इनकी काव्य-कृतियाँ हैं। 'मगध' काव्य संग्रह के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित हुये।