मैं बूढ़ी धरती पर उगा
एक नन्हा-सा पौधा हूँ
समय की घड़ी पर लटका
मध्यरात्रि का शून्य!
पानी में आग को मिलाकर
धुआँ पी रहा हूँ
मैं मर रहा हूँ
दरअसल, मैं आदमी हूँ।
मैं बूढ़ी धरती पर उगा
एक नन्हा-सा पौधा हूँ
समय की घड़ी पर लटका
मध्यरात्रि का शून्य!
पानी में आग को मिलाकर
धुआँ पी रहा हूँ
मैं मर रहा हूँ
दरअसल, मैं आदमी हूँ।