ताल जैसा कच्चा आँगन और अट्ठारह की कच्ची उम्र
देवर की शादी में बड़की भाभी झूम-झूमकर नाच रही हैं!
तभी पता चला कि बड़के हंडे की दाल में नमक ज़्यादा हो गया
सास के ऑर्डर पर नाचती बहू अब वेश्याओं की तरह नाच रही थी
कि मुझे क्या पता था कि तुम्हें बस पतुरियों की तरह नाचना और ही-ही करना सिखाया गया है
बड़की भाभी दौड़कर रसोई में जलते चूल्हे पर फाट पड़ी और गाली को धन्यभाग समझ हँसे जा रही हैं
कि कहीं औरतें ये न कहें कि कितनी नालायक़ बहू है जो ज़रा सी बात पर मुँह फुला लेती है
दलिद्दर भाई-बाप और लापरवाह माँ की बेशऊर बेटी को उज़्र करने का क्या अधिकार
दाल को फीका कर बड़की भाभी सम्भली नहीं थी कि गवनई की औरत टोली में हलचल हुई
सब ख़ुद पर हुए अत्याचार का बखान करने लगीं और नये ज़माने को कोसने लगीं
अब ऐसा भी क्या कि बहू को देवर के ब्याह की ख़ुशी नहीं जो नाचना बंद कर दिया!
घूँघट में आँसू पीती बड़की भाभी फिर बड़के आँगन में ठुमके लगाते गाने लगीं—
“मैं तो भूल चली बाबुल का देश…!”
जबकि वो ताउम्र उस पराये बाबुलदेश को नहीं भूलीं!