‘Mamooli Aadmi Ka Pyar’, a poem by Upma Richa
मामूली आदमी का प्यार
नहीं होता मामूली,
बेरोज़गारी और
आत्महत्या के बारे में
सोचते हुए भी
वो नहीं रहने देता
बाँझ
सपनों के खेत
मामूली आदमी का प्यार
घिसी हुई चप्पल के परों पर
उड़ता है भरपूर,
नापता है आसमान,
तोड़ना चाहता है तारे
और उगाना चाहता है
एक अदद गुलाब…
मामूली आदमी का प्यार…
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