जानता हूँ कि मैं
दुनिया को बदल नहीं सकता,
न लड़कर
उससे जीत ही सकता हूँ
हाँ लड़ते-लड़ते शहीद हो सकता हूँ
और उससे आगे
एक शहीद का मक़बरा
या एक अदाकार की तरह मशहूर…
लेकिन शहीद होना
एक बिलकुल फ़र्क़ तरह का मामला है
बिलकुल मामूली ज़िन्दगी जीते हुए भी
लोग चुपचाप शहीद होते देखे गए हैं!
कुँवर नारायण की कविता 'प्यार की भाषाएँ'