‘Manohar Ko Vivah Prerna’, a poem by Ashok Chakradhar
रुक रुक ओ टेनिस के बल्ले,
जीवन चलता नहीं इकल्ले!
अरे अनाड़ी,
चला रहा तू बहुत दिनों से
बिना धुरी के अपनी गाड़ी!
ओ मगरुरी!
गाँठ बाँध ले,
इस जीवन में गाँठ बाँधना
शादी करना
बहुत ज़रूरी।
ये जीवन तो है टैस्ट मैच,
जिसमें कि चाहिए
बैस्ट मैच।
पहली बॉल किसी कारण से
यदि नो बॉल हो गई प्यारे!
मत घबरा रे!
ओ गुड़ गोबर!
बचा हुआ है पूरा ओवर।
बॉल दूसरी मार लपक के,
विकिट गिरा दे
पलक झपक के।
प्यारे बच्चे!
माना तूने प्रथम प्रेम में
खाए गच्चे।
तो इससे क्या!
कभी नहीं करवाएगा ब्या?
अरे निखट्टू!
बिना डोर के बौड़म लट्टू!
लट्टू हो जा किसी और पर
शीघ्र छाँट ले दूजी कन्या,
माँ ख़ुश होगी
जब आएगी उसके घर में
एक लाड़ली जीवन धन्या।
अरे अभागे!
बतला क्यों शादी से भागे?
एकाकी रस्ता शूलों का,
शादी है बन्धन फूलों का।
सिर्फ़ एक सुर से
राग नहीं बनता,
सिर्फ़ एक पेड़ से
बाग़ नहीं बनता।
स्त्री-पुरुष ब्रह्म की माया
इन दोनों में जीवन समाया।
सुख ले मूरख!
स्त्री-पुरुष परस्पर पूरक।
अकल के ढक्कन!
पास रखा है तेरे मक्खन।
ख़ुद को छोड़ ज़रा-सा ढीला,
कर ले माखन चोरी लीला।
छोरी भी है, डोरी भी है
कह दे तो पंडित बुलवाऊँ,
तेरी सप्तपदी फिरवाऊँ?
अरे मवाली!
मेरे उपदेशों को सुनकर
अंदर से मत देना गाली।
इस बात में बड़ा मर्म है, कि गृहस्थ ही
सबसे बड़ा धर्म है।
ये बताने के लिए
तेरी माँ से
रिश्वत नहीं खायी है,
और न ये समझना
कि इस रिटार्यड अध्यापक ने
अपनी ओर से बनायी है।
ये बात है बहुत पुरानी,
जिसको कह गए हैं
बडे-बड़े संत
बड़े-बड़े ज्ञानी।
ओ अज्ञानी!
बहुत बुरा होगा अगर तूने
मेरी बात नहीं मानी!
चाँद उधर पूनम का देखा
इधर मचलने लगे जवानी,
चाँद अगर सिर पर चढ़ जाए
हाय बुढ़ापे तेरी निशानी!
मुरझाए फूलों के गमले!
भाग न मुझसे थोड़ा थम ले!
बुन ले थोड़े ख़्वाब रुपहले,
ब्याह रचा ले
गंजा हो जाने से पहले।
बहन जी! निराश न हों
ये एक दिन
अपना इरादा ज़रूर बदलेगा,
ज़रूर बदलेगा।
जैसे चींटियाँ चट्टान पर
छोड़ जाती हैं लीक,
जैसे कुएँ की रस्सी
पत्थर को कर लेती है
अपने लिए ठीक!
ऐसे ही
इसका अटल निर्णय भी बदलेगा
कविताएँ सुन-सुनकर
पत्थर दिल ज़रूर पिघलेगा।
डॉण्ट वरी!
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