11 मई, 1912 को जन्मे सआदत हसन मंटो का साहित्यिक सफ़र अंग्रेज़ी फ्रेंच और रूसी लेखकों की रचनाओं के अनुवाद से आरंभ हुआ। शुरू के लेखन में मंटो समाजवादी और वामपंथी सोच से प्रभावित नज़र आते हैं, लेकिन देश के बटवारे ने उन को बहुत गहरा और अमिट घाव दिया जिसकी झलक उनकी अनेक कहानियों में मिलती है, जिन में उन दिनों के पागलपन, क्रूरता और दहशत को दर्शाया गया है। कई बार उनकी लिखी कहानियों पर अश्लीलता के आरोप लगाये गए। 1947 में विभाजन के बाद, मंटो पाकिस्तान में जा बसे। लेकिन वहां उन्हें मुंबई जैसा बौद्धिक वातावरण और दोस्त नहीं मिले और अकेलेपन और शराब के अँधेरे में डूबने लगे और 1955 में गुरदे की बीमारी के कारण उनकी मौत हो गई।

मंटो फिल्म में मंटो का किरदार निभाया है नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने जिन्होंने किरदार को जीवंत करके बेहतरीन अंदाज़ में पेश किया, अपने किरदार में वो फिल्म में कहते हैं-

अगर आपको मेरी कहानियाँ अश्लील या गन्दी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे है, वह अश्लील और गन्दा है। मेरी कहनियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं…। अक़्सर ऐसा कहते थे मंटो, जब उन पर अश्लीलता के इल्जाम लगते…

बेबाक सच लिखने वाले मंटो बहुत से ऐसे मुद्दों पर भी लिखते जिन्हें उस समय के समाज में बंद दरवाज़ों के पीछे दबा कर, छुपा कर रखा जाता था। सच सामने लाने के साथ, कहानी कहने की अपनी बेमिसाल अदा और उर्दू ज़ुबान पर बेजोड़ पकड़ ने सआदत हसन मंटो को कहानी का बेताज बादशाह बना दिया। मात्र 42 सालों की जिन्दगी में उन्होंने 200 से अधिक कहानियाँ, एक उपन्यास, तीन निबन्ध संग्रह और अनेक नाटक, रेडियो और फिल्म पटकथा लिखी। फ्रेंच और रूसी लेखकों से प्रभावित, वामपंथी सोच वाले मंटो के लेखन में सच्चाई को पेश करने की ताकत है जो लम्बे अर्से तक पाठक के दिलो दिमाग पर अपनी पकड़ बनाए रखती है। 2012 में पूरे हिन्दुतान में मनाई गयी मंटो की जन्म-शताब्दी इस बात का सबूत है कि मंटो आज भी अपने पाठकों और प्रशंसकों के लिए जिन्दा है…

स्मृति कार्तिकेय
नमस्कार साथियो, हमारा नाम स्मृति कार्तिकेय है और पेशे से इलाहाबद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्यरत है... पढ़ना और लिखना पसंद है, और हमारा मानना है कि हर एक व्यक्ति लेखक होता है, बस कुछ के पास शब्द ज़्यादा होते है और कुछ के पास कम...