मैं चलना सीख रही थी
जैसे चाँद चलता है
बादल के साथ
मैं चलना चाहती थी तुम्हारे साथ
जैसे परछाई चलती है
ख़ुद के साथ
एक स्पर्श
कब मेरी देह से मर गया
जब ब्याह दी गयी अनचाहे लड़के साथ
अब एक बारिश
जो मेरी आँखों में है
जीवन भर साथ चलती है
और दुःख
इतने गहरे और लाल हो चुके हैं
अब इनसे रोटियाँ सेकती हूँ दिन-रात…