मेहनत से ये माना चूर हैं हम
आराम से कोसों दूर हैं हम
पर लड़ने पर मजबूर हैं हम
मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम

गो आफ़त ओ ग़म के मारे हैं
हम ख़ाक नहीं हैं, तारे हैं
इस जग के राज-दुलारे हैं
मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम

बनने की तमन्ना रखते हैं
मिटने का कलेजा रखते हैं
सरकश हैं सर ऊँचा रखते हैं
मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम

हर चंद कि हैं अदबार में हम
कहते हैं खुले बाज़ार में हम
हैं सब से बड़े संसार में हम
मज़दूर में हम, मज़दूर हैं हम

जिस सम्त बढ़ा देते हैं क़दम
झुक जाते हैं शाहों के परचम
सावंत हैं हम, बलवंत हैं हम
मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम

गो जान पे लाखों बार बनी
कर गुज़रे मगर जो जी में ठनी
हम दिल के खरे, बातों के धनी
मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम

हम क्या हैं कभी दिखला देंगे
हम नज़्म-ए-कुहन को ढा देंगे
हम अर्ज़-ओ-समा को हिला देंगे
मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम

हम जिस्म में ताक़त रखते हैं
सीनों में हरारत रखते हैं
हम अज़्म-ए-बग़ावत रखते हैं
मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम

जिस रोज़ बग़ावत कर देंगे
दुनिया में क़यामत कर देंगे
ख़्वाबों को हक़ीक़त कर देंगे
मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम

हम क़ब्ज़ा करेंगे दफ़्तर पर
हम वार करेंगे क़ैसर पर
हम टूट पड़ेंगे लश्कर पर
मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम!

मजाज़ लखनवी की नज़्म 'मजबूरियाँ'

Book by Majaz Lakhnavi:

मजाज़ लखनवी
मजाज़ लखनवी (पूरा नाम: असरार उल हक़ 'मजाज़', जन्म: 19 अक्तूबर, 1911, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु: 5 दिसम्बर, 1955) प्रसिद्ध शायर थे। उन्हें तरक्की पसन्द तहरीक और इन्कलाबी शायर भी कहा जाता है। महज 44 साल की छोटी-सी उम्र में उर्दू साहित्य के 'कीट्स' कहे जाने वाले असरार उल हक़ 'मजाज़' इस जहाँ से कूच करने से पहले अपनी उम्र से बड़ी रचनाओं की सौगात उर्दू अदब़ को दे गए शायद मजाज़ को इसलिये उर्दू शायरी का 'कीट्स' कहा जाता है, क्योंकि उनके पास अहसास-ए-इश्क व्यक्त करने का बेहतरीन लहजा़ था।