मेरे गीत बड़े हरियाले,
मैंने अपने गीत,
सघन वन अन्तराल से
खोज निकाले
मैंने इन्हें जलधि में खोजा,
जहाँ द्रवित होता फिरोज़ा
मन का मधु वितरित करने को,
गीत बने मरकत के प्याले!
कनक-वेनु, नभ नील रागिनी,
बनी रही वंशी सुहागिनी
सात रंध्र की सीढ़ी पर चढ़,
गीत बने हारिल मतवाले!
देवदारु की हरित-शिखर पर
अन्तिम नीड़ बनाएंगे स्वर,
शुभ्र हिमालय की छाया में,
लय हो जाएँगे, लय वाले!