‘Mere Purush’, Hindi Kavita by Shweta Rai

1

नथुनों में नए गुड़ की महक है
मिट्टी सीली सीली सी है

तुम्हारे चेहरे पर
लीपकर बंद कर दिए गए बखार
की निश्चिन्तिता के भाव
बिखरे हुए हैं

धान के धनक को लेकर जब तुम झुकते हो
तो साँझ मुस्कुराती है
रात के ऊपर

टिम टिम तारे की सिहरती रौशनी में
जब तुम्हारे श्वासों से आती है
उसना भात की महक
तब जाकर समझ पाती हूँ कि ये शिशिर इतना मोहक क्यों है…

2

जब मौसम अनुकूल हो तो आसान होती है
बीज से पौध बनने की क्रिया

जिसमें तुम्हारे हाथों की रेखाएँ
बनती हैं
पौधे की रक्तवाहिनियाँ
तुम्हारा स्वेद उनका रक्त
तुम्हारी मुस्कान उनकी हरियाली

सजीवता को अमरत्व देती तुम्हारी उँगलियाँ
जीवन द्वार के वन्दनवार में सजे
आम्र पल्लव ही तो हैं…

3

भावनायें जानती हैं मंथर, मद्धम, तीव्र होना

साँझ के बोझिल कण्ठ से ही निकलता है
भोर का कलरव गान
और जीवन वातायन में बिखरती है ऊर्जा की अग्नि

जिसमें डूब तुम्हारी देह जानती है
दुगुणित करना सृष्टि को…

4

दम्भ से रंजित तुम्हारा माथा

कुमुदिनी के स्पर्श मात्र से
झुक जाता है
जिह्वा करती है मौन को वरण
और मन के जलप्रपात पर तैरने लगती हैं
कोमल कामनाओं की जलपरियाँ…

पर जब तक नयनों से होने न लगे वृष्टि
तुम्हारे प्रेम का ऐश्वर्य
मलिन ही रहेगा…

5

तुमने रचा बीज
मैंने रचा गर्भ
और यूँ हम दोनों ने मिलकर
वत्सला धरती को किया सुरक्षित

प्रेम का जो वैभव था, उसी में छुपा हुआ था उसका पराभव

नीरव रात्रि की कालिमा ही
आज भी समेटती है प्रेम का ऐश्वर्य…

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श्वेता राय
विज्ञान अध्यापिका | देवरिया, उत्तर प्रदेश | ईमेल- [email protected]