मेरी आँखों की पुतली में
तू बनकर प्रान समा जा रे!
जिससे कण-कण में स्पंदन हों
मन में मलायानिल चंदन हों
करुणा का नव अभिनन्दन हों
वह जीवन गीत सुना जा रे!
खिंच जाय अधर पर वह रेखा
जिसमें अंकित हों मधु लेखा
जिसको यह विश्व करे देखा
वह स्मिति का चित्र बना जा रे!