मेरी असलियत
मेरा डस्ट-बिन जानता है,
अपनी घृणा,
अपनी असफलता,
अपनी बेईमानी,
अपनी शेखी,
अपनी बुराइयाँ,
अपना ‘नपुंसक’ आक्रोश,
‘ये सब’ अपने
डस्ट-बिन में फेंक कर
बाहर निकलता हूँ मैं,
वो जो बाहर
मिलता हूँ न आपसे?
नकली ‘मैं’ हूँ,
असली आदमी तो
घर के डस्ट-बिन में है!

-अरुण #स्पर्श