‘Meri Shavyatra’, a poem by Mamta Jayant
उस दिन अचानक
हुई थी मेरी मृत्यु
निकल गए थे प्राण
गिर पड़ी थी धरा पर
शैय्या पर पड़कर
ख़ुद ही किया था विलाप
हो गई थी विदा जग से
ख़ुद ही पोंछे थे आँसू
और ख़ुद ही बँधायी थी धीर,
चार कन्धों पर चलने वाली अर्थी
दो ही कन्धों पर उठायी थी,
निकल पड़ी थी ‘शवयात्रा’ को
जो अभी तक जारी है…
आज तक नहीं मिला शमशान
नहीं पहुँच पायी गंतव्य तक…
अब बोझिल होने लगे हैं कन्धे
और थक गए हैं पाँव
नहीं ढोया जाता
अपने ही कन्धों पर
अपनी अर्थी का बोझ
न जाने कब तक चलेगी
मेरी शवयात्रा!!
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