घर के एक कमरे में बैठी
बुज़ुर्ग औरत से मैं बात नहीं कर पाता,
कभी-कभार पास जाकर बैठ जाता हूँ
हँसी-ठिठोली भी कर लेता हूँ
लेकिन!
इसे भी बात करना नहीं कहा जा सकता,
ये ठीक वैसे ही है जैसे कभी-कभी
लाखों रुपये कमाने वाला व्यक्ति
चौराहे पर घूमने वाले भिखारियों को
एक रुपये का दान कर देता है,
ये सोचकर कि अब वो उसे कोसेगा नहीं।
ठीक ऐसे ही हम एक मिनट का दान
अपने बुज़ुर्गों के लिए कर देते हैं।
क्या ये सच नहीं?