तुम्हारी याद
कल जो अपनी यादों की अलमारी झाड़ रहा था, एक कोने में तुम्हारी याद मिल गयी। जैसे शांत समुन्दर में अचानक उफ़ान आया हो,...
तुम मिलो मुझे
तुम मिलो मुझे समंदर की गीली रेत पर
बनाते अपने पैरों के निशाँ...
मैं मिलूंगा तुम्हें समंदर की उसी गीली रेत पर बनाते
तुम्हारे पैरों पे अपने...
रास्ते और मेरा सफर
मैं खुद को ही मंजिल मानकर चलता रहा अनजानी राहों पर, कुछ देर चलने के बाद मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो गहरा शून्य...
घर में घर का निशाँ ढूँढता हूँ।
छत तो है बस मकाँ ढूँढता हूँ
घर में घर का निशाँ ढूँढता हूँ।
जमीं पे सबका हक़ है अपना अपना
अब तो रहने को आसमाँ ढूँढता...
मोहब्बत देखूं
तेरी याद में मैं खुद को बिखरा इस तरह देखूँ
पतझड़ में पेड़ की पत्ती का पेड़ से विरह देखूं ।।
आ दौड़ के और भर...
ज़ीस्त ये कैसी जंजाल में है
ज़ीस्त ये कैसी जंजाल में है
चलना इसे हर हाल में है
माज़ी के पीछे चलने वाले
हाल तेरा किस हाल में है
जवाब छोड़ तो आये हो...
दो दुनिया का फासला
"सुबह के पौने ग्यारह बजे रोड-रैश खेलते हुए आता विक्रम ऑटो पकड़ती हूँ और ड्राइवर सीट के पिछले हिस्से से सटी सीट पर टिक जाती हूँ। टिकना यहाँ उपयुक्त शब्द है क्योंकि ग़ाज़ियाबाद के ऑटो में 'बैठने' की लक्ज़री तो किस्मत वालों को मिलती है। बहरहाल, आधा ध्यान घड़ी की सुई पर है और आधा सामने लगे लाल-हरी चोली का एक सिरा मुँह में दबाये लड़की के चित्र पर। नीचे लिखा है - 'सिर्फ तुम'।"