मिट्टी के पौधे में सपनों के फूल,
जीवन की सेज पर किस्मत दुकूल।
किस्मत दुकूल ओढ़ सिहरे अनिश,
मौसम अनुकूल हो या मौसम प्रतिकूल।
सांसें रफू करते बीते उमर,
कैसी डगर है, ये कैसा सफर!
मन के घरौंदों में दीमक लगे।
तिमिर की सुरक्षा में दीपक जगे।
हृदय को पता है न मन को खबर,
ज़रूरत की दुनिया में उनका नगर।
अहर्निश सुनो! आत्म-भटकन के स्वर।
कैसी डगर है ये कैसा सफर!
सफर एक जिसमें न मन से चले।
न मन को मिले हैं न मन से मिले।
कदम दर कदम पर हैं लिखते चले,
कि हर घाव दूजे से फिर भी भले।
न चलना है मन से न जाना ठहर।
कैसी डगर है ये कैसा सफर!