क्या कहा—चुनाव आ रहा है?
तो खड़े हो जाइए
देश थोड़ा बहुत बचा है
उसे आप खाइए।
देखिए न,
लोग किस तरह खा रहे हैं
सड़के, पुल और फ़ैक्ट्रियों तक को पचा रहे हैं
जब भी डकार लेते हैं
चुनाव हो जाता है
और बेचारा आदमी
नेताओं की भीड़ में खो जाता है।
संविधान की धाराओं को
स्वार्थ के गटर में
मिलाने का
हर प्रयास जारी है
ख़ुशबू के तस्करों पर
चमन की ज़िम्मेदारी है।
सबको अपनी-अपनी पड़ी है
हर काली तस्वीर
सुनहरे फ़्रेम में जड़ी है।
सारे काम अपने-आप हो रहे हैं
जिसकी अंटी में गवाह हैं
उसके सारे ख़ून
माफ़ हो रहे हैं
इंसानियत मर रही है
और राजनीति
सभ्यता के सफ़ेद कैनवास पर
आदमी के ख़ून से
हस्ताक्षर कर रही है।
मूल अधिकार?
बस वोट देना है
सो दिए जाओ
और गंगाजल के देश में
ज़हर पिए जाओ।
चैनाराम शर्मा की कविता 'क्यू में लग जाइए'