काग़ज़ में लिपटी सभ्यता के,
उस पन्ने को मोड़ दो,
जहाँ से मुड़ जाए ये सभ्यता,
धुएँ की ओर, जो
फैक्ट्रियों का नहीं, चूल्हे का हो।

एक वो पन्ना भी वापिस ले आओ,
जहाँ हो आग का आविष्कार,
पर इतना ध्यान रहे,
कि आग सिर्फ़ लकड़ियों तक सीमित हो,
आदमी के कलेजे तक ना पहुँचे।

और हाँ! उस मोड़ पर वो प्रेम भी मिले,
जो सिर्फ़ एक बार हो,
शाश्वत हो, पवित्र हो,
देह व्यापार से परे,
जो आत्माओं के मिलन पर आकर रुके।

खेत में हल के पीछे,
दौड़ते बगुले के पदचिह्न,
चक्की के दो पाटों के बीच पिसते आटे,
की सभ्यता तक ले चलो।

अगर उस सभ्यता को पुनर्जीवित कर सको,
तो सूचित करना मुझे,
फिर मुझे मोक्ष नहीं चाहिए,
मुझे चाहिए पुनर्जन्म,
ताकि मैं देख सकूँ,
पहली बार पहिया कैसे बना था।

दिव्य प्रकाश सिसौदिया
लेखक कविता लिखना अपना शौक ही नही धर्म मानते है। इतिहास विषय से स्नातक, परास्नातक, तथा यूजीसी नेट परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात इन्हें सिविल सेवा मुख्य परीक्षा देने का अवसर भी प्राप्त हुआ।इसके अतिरिक्त लगभग 8 वर्षो तक रामलीला में "लक्ष्मण" का अभिनय भी करते रहे है। बाकि इनका बेहतर परिचय कविताये ही दे सकती है। वर्तमान में लेखक उत्तर प्रदेश सरकार में " असिस्टेंट कमिशनर" के पद पर चयनित है।